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प्रशमन

प्रस्तावना

पूर्व में, आपदा प्रबंधन का तरीका मुख्यतः प्रतिक्रियात्मक तथा राहत-केंद्रित रहा है। अब राष्ट्रीय स्तर पर आमूल-चूल बदलाव हुआ है जिसमें पूर्ववर्ती कार्रवाई केंद्रित तरीके के स्थान पर रोकथाम, प्रशमन तथा तैयारी पर जोर देते हुए आपदाओं के संपूर्ण तथा एकीकृत प्रबंधन के तरीके को अपनाया जाता है। इन प्रयासों का लक्ष्य विकासात्मक लाभ को संरक्षित करना तथा लोगों के जीवन, आजीविका तथा सम्पति के नुकसान को कम-से-कम करना भी है। रोकथाम तथा प्रशमन से सुरक्षा में प्रभावी सुधार होने में सहायता मिलती है।

भूमिका तथा उतरदायित्व

  • विभिन्न अपेक्षित दखलों (इंटरवेशंस) की पहचान तथा विवरण के साथ-साथ प्रशमन परियोजनाओं की रूपरेखा तथा परिभाषा तय करना। इन कामों को एक समावेशी तथा भागीदारी प्रक्रिया के माध्यम से किया जाएगा जिसमें केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों/राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्रों तथा अन्य हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श करना शामिल है।

  • सभी सहायक प्रणालियों अर्थात् वितीय, तकनीकी तथा प्रबंधकीय संसाधनों, के साथ-साथ अपेक्षित प्रौद्योगिकीय तथा विधिक प्रणालियों का उचित वर्णन करने वाली विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करना। इसके लिए सरकार के नियम तथा विनियमों के अनुसार अपेक्षिेत आधार पर विशेषज्ञों/एजेंसियों को विनियोजित करना जरूरी होगा।

मंत्रिमंडल टिप्पणी के अनुसार संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी उप प्रभाग के उत्तरदायित्व

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन सेवा (एन.डी.एम.एस.) प्रायोगिक परियोजना का निर्माण तथा कार्यान्वयन और ऑफ-साइट नाभिकीय आपात-स्थितियों से निपटने के लिए निर्णय समर्थन प्रणाली (डी.एस.एस.एन.ओ.ई.)।
  • एन.डी.एम.ए. में स्थानीय क्षेत्रीय नेटवर्क (एल.ए.एन.) और व्यापक क्षेत्रीय नेटवर्क (डब्ल्यू.ए.एन.) की स्थापना तथा प्रबंधन। 
  • नोडल मंत्रालयों, पूर्वानुमान तथा पूर्व-चेतावनी अभिकरणों के साथ संपर्क (इंटरेक्शन) करने का काम।
  • सूचना प्रौद्योगिकी तथा संचार संबंधी मामलों पर केंद्रीय तथा राज्य सरकारों और संबंधित विभागों के साथ संपर्क (इंटरेक्शन) करने का काम।
  • सूचना प्रौद्योगिकी तथा संचार संबंधी मामलों पर एन.डी.आर.एफ. की बटालियनों को सलाह देना।
  • सेवा प्रदाताओं के साथ संपर्क बनाए रखना। 

नई पहल

  • भारत में महानगरों/राजधानी वाले षहरों/बड़े षहरों में विकिरणकीय खतरों से निपटने के लिए गतिषील विकिरण खोज प्रणाली (एमआरडीएस) के नियोजन (स्थापना) पर परियोजनाः-लावारिस रेडियोधर्मी सामग्री/पदार्थों का पता लगाने के लिए तथा जनता को इसके खतरनाक प्रभाव से बचाने के लिए, एनडीएमए ने भारत में महानगरों/सभी राजधानी वाले षहरों तथा बड़े षहरों में नियोजित करने के लिए गतिषील विकिरण खोज प्रणालियों को राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों को इसकी व्यवस्था “प्रषिक्षकों के प्रषिक्षक के रूप में कार्मिकों को भी प्रषिक्षण देने की योजना बनाने” हेतु एक रूपरेखा प्रस्तुत की है।
  • भूस्खलन जोखिम न्यूनीकरण योजना (एलआरएमएस)“आपदा रोकथाम रणनीति, आपदा न्यूनीकरण तथा महŸवपूर्ण भूस्खलनों की निगरानी में अनुसंधान तथा विकास कार्य” को षामिल करते हुए भूस्खलन प्रभावित राज्यों द्वारा भूस्खलन न्यूनीकरण परियोजनाओं के लिए विŸाीय सहायता प्रदान करना षामिल है जिससे पूर्व-चेतावनी प्रणाली तथा क्षमता निर्माण प्रयासों का विकास किया जा सके। यह योजना तैयारी के अधीन है।
  • बाढ़ जोखिम प्रषमन स्कीम (एफआरएमएस)इस स्कीम में क) माॅडल प्रयोजनीय बाढ़ आश्रय-स्थलों के विकास के लिए प्रायोगिक परियोजनाएं तथा ख) नदी घाटी विषिश्ट बाढ़ पूर्व-चेतावनी प्रणाली तथा बाढ़ के मामले में सुरक्षित निकासी हेतु गांव वालों को पूर्व-चेतावनी देने के लिए आप्लावन (इननडेषन) माॅडल्स को तैयार करने के लिए डिजिटल एलीवेषन मैप्स (मानचित्र) जैसे कार्यकलाप षामिल हैं। इस स्कीम, के अंतर्गत इन उपर्युक्त दो कार्यकलापों के संबंध में प्रायोगिक स्कीम को चलाने के लिए बाढ़ प्रभावित राज्यों को विŸाीय सहायता प्रदान की जानी है। यह स्कीम तैयारी के अंतर्गत है।
  • भारत में नौका दुर्घटनाओं को रोकने के लिए दिषानिर्देषों की तैयारी हेतु प्रमुख समूहः-देष में होने वाली कुछ गंभीर नौका दुर्घटनाओं जिनमें मई, 2012 में धुबरी, असम में हुई नौका दुर्घटना षामिल है जिसमें कई लोगों की जानंे गई थीं, के परिपे्रक्ष्य में गृह मंत्रालय के अनुरोध पर एनडीएमए ने एक प्रमुख समूह/कार्यकारी समूह का गठन किया है जिसमें केंद्र/राज्य सरकारों के संबंधित विभाग तथा अन्य संगठनों के प्रतिनिधि षामिल हैं जो भारत में बड़ी नौका दुर्घटनाओं को रोकने के लिए राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों के मार्गदर्षन हेतु इस विशय पर उपयुक्त दिषानिर्देष तैयार करेंगे। प्रमुख समूहों के विचार-विमर्ष के बाद नौका सुरक्षा पर दिषानिर्देष जारी किए जा चुके हैं।

संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी

एक उभयनिश्ठ चेतावनी नवाचार (काॅमन अलर्टिंग प्रोटोकाॅल) की स्थापना हेतु प्रस्ताव

1.लंबे समय तक आपदा प्रबंधन को करने के लिए संचार प्रौद्योगिकी की भूमिका को एक अभिन्न अंग माना गया है। हालांकि संचार प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग की आपदा प्रबंधन के सभी चार विषेश चरणों नामतः प्रषमन, तैयारी, कार्रवाई तथा पुनर्बहाली करने में एक भूमिका है। अधिकांष अनुप्रयोग मोचन तथा पुनर्बहाली चरणों में पारंपरिक रूप से उपयोग होते रहे हैं। नई संचार तथा सूचना प्रौद्योगिकियां जो पिछले दो दषकों के दौरान उभर-कर आई हैं, विभिन्न संचार प्रणालियों के एकीकरण की और अधिक संभावनाएं प्रदान करती हैं। इंटरनेट, मोबाइल फोनो, फैक्स, ई-मेल, आकाषवाणी तथा दूरदर्षन समेत विभिन्न संचार प्रणालियों की अंतरसंचालनीयता उत्तरोत्तर कार्यात्मक होती जा रही है। परिणामस्वरूप, आपदाओं के प्रषमन तथा रोकथाम में संचार प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग हेतु संभावनाएं भी बढ़ रही हैं। आपदा प्रबंधन में संचार प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग के सामाजिक तथा तकनीकी, दोनों पहलू हैं। आपदा प्रबंधन हेतु इन प्रौद्योगिकियों का प्रभावी अनुप्रयोग उस सामाजिक तथा आर्थिक संदर्भ के लिए उनकी उपयुक्तता पर अत्यन्त अधिक निर्भर करता है जिसमें उनका इस्तेमाल किया जाता है।

2.सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.ई.) में हुई तीव्र प्रगति ने लोगों तथा समुदायों के जीवन को इन इन तरीकों से प्रभावित तथा परिवर्तित किया है जो अभी कुछ दषकों पहले तक लगभग असंभव थे। समाज के सभी स्तरों पर विष्वसनीय, तथा समय पर सूचना प्राप्त करना किसी आपदा के तुंरत पूर्व, दौरान तथा बाद में अति आवष्यक है।

3.संकट की स्थितियों के दौरान महत्वपूर्ण सूचना के आदान-प्रदान की पद्धतियां सामान्य जीवनचर्या की तुलना में अलग होती हैं। उचित सार्वजनिक, निजी तथा स्वयं सेवाओं को एक समन्वित, समयबद्ध तरीके से पहचानना तथा परिनियोजित करना-किसी आपदा के अग्रिम प्रबंधन हेतु-ऐसी चिंताओं जैसे अंतरसंचालनीयता तथा सामान्य मानकों का उपयोग, से निपटने की प्रतिबद्धता पर निर्भर करता है। इसके अलावा, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियां केवल उनकी सबसे कमजोर कड़ी के रूप में ही अच्छी हैं। इसलिए आपदा संचार हेतु तैयारी का ऐसे परिदृष्यों में अनुमान लगाए जाने की आवष्यकता है। जिनमें आधार संचार माध्यमों -प्रसारण आकाषवाणी, दूरदर्षन, मोबाईल टेलीफोन, विद्युत षक्ति,  डेटा बेस प्रबंधन तथा इंटरनेट संचार- सहित किसी एकल सूचना एवं प्रौद्योगिकी तत्व से समझौता किया गया है। 

4.हाल के वर्शों में, आपदा प्रबंधन में प्रयासों को सूचना, संचार तथा अंतरिक्ष प्रौद्यागिकियों (आई.ई.सी.एस.टी.) में अप्रत्याषित विकास से प्रोत्साहन मिला है, जिनका आपदा से निपटने की तैयारी, न्यूनीकरण, प्रषमन तथा प्रबंधन में व्यापक अनुप्रयोग है। आई.सी.एस.टी. ने कई तरीकों से आपदा प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की हैः नामतः 

  • अवलोकन
  • निगरानी
  • आंकड़ा एकत्रण
  • नेटवर्क संचार
  • चेतावनी प्रसार 
  • सेवा डिलीवरी तंत्र
  • जी.आई.एस. डेटाबेस
  • विषेशज्ञ विष्लेशण प्रणालियां
  • सूचना संसाधन आदि

5.पूर्व चेतावनी आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डी.आर.आर.) का एक बहुत अनिवार्य संगठक है क्योंकि यह ना केवल तकनीकी रूप से सटीक चेतावनियाँ उपलब्ध कराता है बल्कि यह एक ऐसी प्रणाली है जिसे जोखिम की समझ होना आवष्यक है और यह किसी आपदा को रोकने या प्रषमित करने के लिए कार्रवाई प्रारंभ करने के चरम लक्षय के साथ चेतावनी सूचना को उपलब्ध कराने वालों तथा प्राप्त करने वालों के बीच एक कड़ी होती है। 

6.पूर्व चेतावनी प्रणाली को आगे चार अलग-2 खंडों में उप-विभाजित किया जा सकता हैः

  • जोखिम जानकारी
  • तकनीकी निगरानी तथा चेतावनी सेवा
  • चेतावनियों को प्रसार तथा संचार
  • मोचन क्षमता तथा कार्रवाई हेतु तैयारी (प्राधिकारियों तथा जोखिम में पड़े व्यक्तियों द्वारा)

7.हाल की आपदओं ने स्पश्ट रूप से दर्षाया है कि तकनीकी सहयोग वाली ध्वनि चेतावनियों का उत्पादन इस बात के पूर्व आकलन कि जोखिम क्या है अथवा बिना किसी स्पश्ट प्रसार रणनीति तथा उचित मोचन क्षमता के व्यर्थ हो सकता है। उदाहरण के लिए वर्श 2008 में मयांमार में चक्रवात नर्गिस द्वारा मचाई गई तबाही पूर्व चेतावनी सेवा में तकनीकी विफलता के कारण नहीं थी -मयांमार मौसम विज्ञान विभाग द्वारा चेतावनी दी गई थी लेकिन पूर्व चेतावनी सेवा में अन्य तत्वों मुख्यतः संचार तथा कार्रवाई करने के तैयारी के कारण आपदा हुई। 

8.जानकारी तथा खबरों में विलंब तथा उनको तोड़-मरोड़ कर पेष किए जाने से बचने के लिए उभयनिश्ठ चेतावनी नवाचार (सी.ए.पी.) जैसे मानकों को विकसित किया जाना महत्वपूर्ण है। सी.ए.पी. विभिन्न चेतावनी प्रौद्योगिकियों के बीच आपातकालीन सतर्कता तथा सार्वजनिक चेतावनियों के आदान-प्रदान के लिए एक सामान्य फाॅर्मेट उपलब्ध कराता है। यह आदेषित आंकड़ों का एक समुच्च है जिसमें एक सतर्कता संकेत के लिए सभी जानकारी षामिल होती हैं। इसमें इलाका, अत्यावष्यकता, गंभीरता, निष्चितता, मुख्य खबर, ब्यौरा, घटना, श्रेणी, संदेष का प्रकार जैसी जानकारी और मोचन का प्रकार, भेजने वाला, प्रभावी समय तथा संदेष का प्रकार के साथ स्कोप षामिल होता है। सी.ए.पी. कई आई.सी.टी. अनुप्रयोगों को एक साथ अनेक चेतावनी प्रणालियों द्वारा लगातार प्रसारित किए जाने वाला एक चेतावनी संदेष भेजने की अनुमति देता है जो इस प्रकार चेतावनी की कारगरता को बढ़ाता है और लागत को कम करता है। सु-समन्वित बिल्डिंगों तथा अच्छी तरह तैयार किए गए संदेषों के साथ भी, दूर-दराज के क्षेत्रों में कई स्थानों पर प्रसार किया जाना अभी भी कठिन है और इसके लिए प्रौद्योगिकीय तथा गैर-प्रौद्योगिकीय समाधानों के संयोजन की आवष्यकता है। सर्वत्र संपर्कता के लिए सब जगह काम आने वाला कोई एकमात्र समाधान नहीं है-इसलिए उचित संचार उपकरणों तथ प्रक्रियाओं को तय करने के लिए समुदाय के सदस्यों की भागीदारी अनिवार्य है ताकि यह सुनिष्चित किया जा सके कि चेतावनियां एक समयबद्ध तरीके से लोगों तक पहुंच सके। आई.सी.टी. का पूर्व चेतावनी के क्षेत्र में वैष्विक, क्षेत्रीय, राश्ट्रीय तथा स्थानीय सहयोग बढ़ाने के लिए उपयोग किया जा सकता है। 

9.अतः इस विशय में यह प्रस्ताव किया जाता है कि एनडीएमए दूरसंचार विभाग, विभिन्न निजी सेवा प्रदाताओं के साथ-साथ पूर्व चेतावनी अभिकरणों को सक्रिय सहभागिता के साथ सी.ए.पी. के क्षेत्र में विभिन्न हितधारकों को षामिल करके एक कदम आगे बढ़ाना पसंद करेगा। यह सबको अच्छी तरह पता है कि उदाहरण के लिए कनाडा, संयुक्त राज्य अमरीका, रूस तथा आस्ट्रेलिया जैसे विभिन्न विकसित देषों के अलावा श्रीलंका, बंगलादेष जैसे छोटे देष अपनी जरूरतों के हिसाब से अपने लिए सबसे उपयुक्त सी.ए.पी. विकसित करने में सफल रहे हैं। 

10.इस प्रकार, एनडीएमए एक उभयनिश्ठ चेतावनी नवाचार (सी.ए.पी)-भारत केंद्र का सृजन करने के लिए एक निश्ठापूर्ण तथा प्रतिबद्ध प्रयास प्रारंभ करने के लिए दूरसंचार विभाग का आग्रह करता है ताकि यह सुनिष्चित किया जा सके कि केंद्र सरकार का संकट की घड़ियों में राज्य की मषीनरी से संपर्क न कट पाए जैसा की वर्श 2013 की उत्तराखंड त्रासदी और वर्श 2014 की जम्मू एवं कष्मीर में आई बाढ़ की घटनाओं के दौरान हुआ था।

चालू परियोजनाएं

परियोजना 1:- 120 स्थानों के लिए राश्ट्रीय आपदा प्रबंधन सेवा (एन.डी.एम.एस.) प्रायोगिक परियोजना 

एन.डी.एम.ए. भू-भागीय संचार नेटवर्क आपदाओं के दौरान विफल/खराब होते रहते हैं जैसा कि हाल ही में कुछ समय पूर्व जम्मू एवं कष्मीर तथा उत्तराखंड की आपदाओं के मामले में हुआ था। इस समस्या से निजात पाने के लिए, एक एकीकृत दृश्टिकोण अपनाने का प्रयास किया गया है ताकि षांति-काल तथा किसी आपदा स्थिति के दौरान आपदा के प्रबंधकों को भरोसेमंद दूरसंचार आधार ढांचा उपलब्ध कराया जा सके। गृह मंत्रालय, एनडीएमए, एनडीआरएफ मुख्यालय, स्थानीय प्रषासन को उचित निर्णयों को करने में मदद देने के लिए एकीकृत दृश्टिकोण को अपनाना आई.सी.टी. सेवाओं का हिस्सा है। इस परियोजना के लिए, ‘राश्ट्रीय आपदा प्रबंधन सेवा (एन.डी.एम.एस.)’ षीर्शक वाली एक प्रायोगिक परियोजना की नीचे दी गई सूची के अनुसार 120 स्थानों के लिए परिकल्पना की गई हैः 

  • गृह मंत्रालय -01
  • एनडीएमए -01
  • एनडीआरएफ मुख्यालय -01
  •  सभी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र मुख्यालय -36
  •  चुनिन्दा जिले-81

जो भू-भागीय नेटवर्क और एच.एफ. रेडियो से समर्थित एक विष्वसनीय वी-सेट संचार प्रणाली प्रदान करने का कार्य पर आधारित है।

यह परियोजना भारत संचार निगम लिमिटेड (बी.एस.एन.एल.) द्वारा लागू की जा रही है।

प्रायोगिक परियोजना के दायरे में गृह मंत्रालय, एनडीएमए, एनडीआरएफ मुख्यालय, राज्य एवं चुनिन्दा संवेदनषील जिलों में आपातकालीन प्रचालन केंद्र हेतु विष्वसनीय दूरसंचार आधार-ढांचा तथा तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना षामिल है।

परियोजना के मुख्य लक्ष्य निम्नानुसार हैः

  • आपदा के दौरान प्राथमिकता पर आपदा प्रभावित जिलों के आपातकालीन प्रचालन केंद्रों, राज्यों, एनडीएमए, एनडीआरएफ मुख्यालय, गृह मंत्रालय के बीच वाइस काॅलों को उपलब्ध कराना तथा षांति-काल में अन्य आपात कालीन केंद्रों को बैंडविथ की उपलब्धता पर निर्भर करते हुए एक सीमित तरीके से वाइस काॅल उपलब्ध कराना। 
  • आपदा स्थल से निषुल्क इंटरनेट, ई-मेल, लैंडलाइन (बाहरी काल) तथा मोबाइल (बाहरी काल), वेब सेवाएं तथा अन्य स्थानों को बैंडविथ की उपलब्धता पर निर्भर करते हुए एक सीमित तरीके से उपलब्ध कराया जाएगा।
  • वैष्विक गेटवे के माध्यम से ई.पी.ए.बी.एक्स. मषीन उपलब्ध कराई जाएगी जिसमें टेलीफोन कालों को एच.एफ., सेटलाइट, भू-भागीय नेटवर्क या इंटकाम तथा आई.वी.आर.एस. समेत अन्य किसी माध्यम पर भी  ट्रांसफर करने की सुविधा होगी।
  • एच.एफ. रेडियो संपर्क व्यवस्था।
  • विभिन्न पूर्वानुमान तथा चेतावनी एजेंसियों (केंद्रीय जल आयोग, भारतीय विज्ञान मौसम विभाग, आई.एन.सी.ओ.आई.एस, जी.एस.आई आदि) की उनके पोर्टल द्वारा दी जाने वाली जानकारी/सेवाएं प्राप्त करना।
  • आपदा प्रभावित स्थल से विभिन्न सूचनाओं (आॅडियो, वीडियो तथा डेटा) को एकत्रित करके सभी हितधारकों को, जहां तक संभव हो, आपदा के एकल दृष्य को उपलब्ध कराना।
  • गृह मंत्रालय, एनडीएमए, एनडीआरएफ मुख्यालय, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र/चुनिन्दा जिलों के साथ रणनीति बनाने तथा सूचना आदान प्रदान के लिए मंच उपलब्ध कराना।

प्रस्तावित समाधान 

राश्ट्रीय भूकंप जोखिम प्रषमन परियोजना (तैयारी चरण)

1. राश्ट्रीय भूकंप जोखिम प्रषमन (तैयारी चरण) परियोजना को 2 वर्शों (2013-15) की अवधि के अंदर कार्यान्वित होने के लिए 24.87 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ एक केंद्रीय प्रायोजित योजना स्कीम के रूप में अनुमोदित कर दिया गया है।

2. राश्ट्रीय भूकंप जोखिम प्रषमन (तैयारी चरण) परियोजना के 2 मुख्य संघटक और उनकी लागत निम्नानुसार हैंः

  • प्रौद्योगिकीय-विधिक प्रणाली जिसमें संबंधित षहरों/राज्यों में प्रौद्योगिकी-विधिक प्रणाली को अपनाना, प्रवर्तन, अद्यतन करना-8.20 करोड़ रुपए
  • सांस्थानिक सुदृढ़ीकरण जिसमें काॅलेजों तथा संस्थानों में षिक्षा तथा अनुसंधान का क्षमता निर्माण षामिल है-9.52 करोड़ रुपए
  • भूकंपरोधी निर्माण तकनीकों में कार्यरत षिल्पियों, इंजीनियरों तथा राजमिóियों का क्षमता निर्माण-3.85 करोड़ रुपए
  • राश्ट्रीय स्तर तथा सभी संवेदनषील राज्यों के स्तर पर जन-जागरुकता एवं सुग्राहीकरण कार्यक्रम-1.88 करोड़ रुपए
  • परियोजना प्रबंधन-1.42 करोड़ रुपए

3. इस परियोजना को एनडीएमए द्वारा राज्य सरकार/संघ राज्य क्षेत्र जो देष में भूकंपीय क्षेत्र पअ तथा अ  में पड़ते हैं, के समन्वय से क्रियान्वित किया जाना है। तैयारी चरण के अधीन कवर किए जाने वाले षहरों/जिलों की राज्यवार सूची निम्नानुसार हैंः-

टिप्पणी: 25 लक्षित षहरों में से 16 षहर राज्यों की राजधानी हैं। परियोजना के अंतर्गत कवर की जाने वाली कुल जनसंख्या  70189371 है।

4. राश्ट्रीय भूकंप जोखिम प्रषमन परियोजना के तैयारी चरण के 4 प्रमुख परिणाम निम्नानुसार हैंः-

ख. उपर्युक्त के अलावा, वर्तमान में निम्नलिखित स्कीमें/अध्ययन/कार्यकलाप भी किए जा रहे हैं।

  • माॅडल भवन-निर्माण उप-नियम तथा भूकंपरोधी निर्माण तथा आयोजना मानकों को अपनाने की आवष्यकता पर प्रमुख
    हितधारकों की जागरुकता में बढ़ोतरी।
  • भूकंपीय जोन  पअ एवं अ में सभी  21 लक्षित राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में षहर तथा राज्य स्तरों पर माॅडल भवन-निर्माण
    उपनियमों को अपनाने हेतु अपेक्षित निश्पादन।
  • जनसाधारण क्षेत्र में एनबीसी 2005 को (जनता के लिए) उपलब्ध कराने हेतु अनुसरण।
  • भूकंपरोधी निर्माण प्रथाओं को बढ़ावा देना।
  • परियोजनाओं के प्रयासों को जारी रखने के लिए राज्य/षहर स्तर पर क्षमता-निर्माण।
  • 210 संकाय सदस्यों/अध्यापकों हेतु प्रषिक्षकों का प्रषिक्षण कार्यक्रम।
  • 450 प्रषिक्षकों का एक सप्ताह की अवधि वाला अनुकूलन कार्यक्रम (ओरिएंटेषन)।
  •  लक्षित राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में 750 सिविल इंजीनियरों, 1050 वास्तुकारों तथा 1500 राजमिस्त्रियों का क्षमता निर्माण।
  • भागीदार संस्थानों (विषेश रूप से जिला स्तरीय आईटीआई/पाॅलीटेक्निक) की सुविधाओं का सुदृढ़ीकरण।
  • लक्षित राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में भूकंप जागरुकता अभियानों पर फोकस किया गया।

    अन्य कार्यकलाप

    पूर्ण स्कीमें/अध्ययन 

     1. ब्रह्मपुत्र नदी कटाव अध्ययन 

    “ब्रह्मपुत्र नदी कटाव तथा नियंत्रण” पर एक अध्ययन का काम एनडीएमए द्वारा आईआईटी, रूड़की को दिया गया। इस अध्ययन के परिक्षेत्र में निम्नलिखित षामिल हैंः

    ब्रह्मपुत्र  नदी तथा इसकी सहायक बड़ी नदियों (ट्रिब्यूट्रीज) के किनारे के कटाव का उपग्रह आंकड़ा आधारित आकलन।

    हाइड्रोलोजिकल डेटा प्रक्रियान्वयन तथा विष्लेशण।

    ब्रह्मपुत्र नदी की उप-घाटी (सब बेसिन) में बहाव (रनआॅफ) तथा तलछट (सेडिमेंट) माॅडलिंग तथा इसकी सिफारिषों के बारे में आईआईटी रूड़की ने रिपोर्ट सौंप दी है। इस अध्ययन में ब्रह्मपुत्र नदी के असुरक्षित कटाव वाले भागों के पहचान की गई है। यह अध्ययन रिपोर्ट जल संसाधन मंत्रालय, केंद्रीय जल आयोग, ब्रह्मपुत्र बोर्ड तथा असम सरकार के पास भेजी गई है। विस्तृत रिपोर्ट के लिए यहां क्लिक करें।

    2. भारत का संभाव्यवादी भूकंपीय खतरा मानचित्र (पीएसएचए) की तैयारी

    एनडीएम ने भूकंपीय खतरा विष्लेशण के लिए भूकंपों के एक राश्ट्रीय डेटाबेस कैटालाॅग को बनाने के लिए भारत ने संभाव्यवादी भूकंपीय खतरा मानचित्र (पीएसएचए) के विकास पर एक अध्ययन कार्य किया है जिसमें देष के छह या सात अलग-अलग भूकंप की संभावना वाले क्षेत्रों के लिए तीव्र गति क्षीणन संबंध (स्ट्राॅन्ग मोषन अटेनुएषन रिलेषनषिप्स) का विकास/चयन, तथा विभिन्न वापसी की अवधियों (रिटर्न पीरियडों) के लिए 0.20× 0.200 के ग्रिड पर तलषिला स्तर (बेडराॅक लेवल) पर स्पैक्ट्रम त्वरण (एसए) और उच्चतम धरती त्वरण (पीजीए) के लिए राश्ट्रीय पीएसएचए मानचित्र का विकास षामिल है। भू-तकनीकी जांच के साथ-साथ इस अध्ययन का काम मौजूदा डेटाबेस में मौजूद खामियों को दूर करने के लिए किया गया है। संरचनात्मक इंजीनियरी अनुसंधान केंद्र, चेन्नई (एसईआरसी) जिसने इस अध्ययन को किया, ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। विस्तृत रिपोर्ट के लिए लिंक/आइकन पर क्लिक करें।

    3. भारतीय भू-भाग के भूकंपीय माइक्रोजोनेषन हेतु भू-तकनीकी जांच

    दिनांक 16.7.2008 को आयोजित भारतीय भू-भाग के भूकंपीय माइक्रोजोनेषन पर राश्ट्रीय कार्यषाला में लिए गए निर्णय के अनुसार, भू-तकनीकी जांच हेतु विषेशज्ञों के कार्यकारी समूह का अतिरिक्त भू-तकनीकी विषेशज्ञों को षामिल करके विस्तार किया गया ताकि भारत में भूकंपीय माइक्रोजोनेषन अध्ययन हेतु भू-तकनीकी जांच के दस्तावेज तैयार किए जा सकें, चूंकि ऊपर उल्लिखित काम को करने के लिए अपेक्षित विषेशज्ञता तथा सुविधाएँ भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू के पास उपलब्ध थी। इसलिए भारतीय भूखंड के भूकंपीय माइक्रोजोनेषन हेतु भू-तकनीकी जांच के लिए तकनीकी दस्तावेज तैयार करना उन्हें सौंपा गया।

    इस परियोजना के परिक्षेत्र में भूकंपीय माइक्रोजोनेषन हेतु भू-तकनीकी/भू-भौतिकीय जांच के बारे में सभी संगत ब्यौरा देने वाला एक तकनीकी दस्तावेज को तैयार करना षामिल है। इस तकनीकी दस्तावेज में किसी दिए गए स्थल पर डिजाइन, पुनःमरम्मत (रेट्रोफिटिंग) तथा निर्माण कार्य के लिए संरचनात्मक इंजीनियरों द्वारा आवष्यक भू-तकनीकी जानकारियों उपलब्ध होंगी जिसकी द्रवण क्षमता हो सकती है। इस तकनीकी दस्तावेज का उद्देष्य देष में भूकंपीय माइक्रोजोनेषन कार्य के लिए भू-तकनीकी पहलुओं हेतु एक संदर्भ दस्तावेज के रूप में कार्य करना है। आवष्यक परीक्षणों की संख्या सहित अपेक्षित भू-तकनीकी तथा भू-भौतिकीय जांच, परीक्षणों के विवरण जिसमें इस परीक्षणों को करते समय ली जाने वाली सावधानियों तथा इनकी विधि षामिल है, का तकनीकी दस्तावेज के विभिन्न अध्यायों में वर्णन किया गया है। अंत में भूकंपीय माइक्रोजोनेषन अध्ययन हेतु उचित भू-तकनीकी तथा भू-भौतिकीय जांच करने हेतु दिषानिर्देष इसके अंतिम अध्याय में दिए गए हैं। विस्तृत रिपोर्ट के लिए यहां क्लिक करें।

    2. बाढ़ से सुरक्षा के लिए, एनडीएमए को डुंबुर एचई परियोजना के डुंबुर बांध की असुरक्षितता अध्ययन हेतु संबद्ध किया गया। केंद्रीय जल आयोग, सीएसआरएमएस तथा एनडीएमए से लिए गए विषेशज्ञों से बनी संयुक्त टीम ने डुंबुर बांध का निरीक्षण किया और सिफारिष के अनुपालन हेतु त्रिपुरा सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत की।

    3. भारतीय मानक ब्यूरो से प्राप्त संदर्भ

    प्रषमन प्रभाग को भारतीय मानक ब्यूरो, नई दिल्ली से विभिन्न संदर्भ (हवाले) प्राप्त हो रहे हैं। ये संदर्भ नए कोडों को बनाने तथा संषोधनों के माध्यम से विभिन्न कोडों के उन्नयन से संबंधित है। एनडीएमए द्वारा देखे जा रहे विशय-मामलों को ध्यान में रखकर ऐसे हवालों पर एनडीएमए अपने विचार देता है जैसे आपदा संबंधी कोड।

    • भारत में भवनों के प्रकारों का भूकंपीय असुरक्षिता आकलन  : भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग प्रकारों के भवनों की सूची
      तैयार करने का काम तथा बिल्डिंग की सूचियों में दिखाई देने वाले अलग-अलग प्रकार के भवनों हेतु असुरक्षितता संबंधी कार्यों का विकास कार्य देष के विभिन्न भागों में चार विभिन्न नोडल संस्थानों नामतः ;आईआईटी रूड़की-उŸारी क्षेत्र, ;आईआईटी खड़गपुर-पूर्वी क्षेत्र, ;आईआईटी गुवाहाटी-पूर्वाेŸार क्षेत्र, ; आईआईटी मुंबई-पष्चिमी क्षेत्र तथा आईआईटी, मद्रास-दक्षिणी क्षेत्र के सहयोग से आईआईटी, मुंबई को सौंप दिया गया है। आईआईटी, मंुबई ने अंतिम रिपोर्ट का मसौदा तैयार कर लिया है।
    •  उन्नत भूकंप खतरा मानचित्रों की तैयारी : विषेशज्ञों की कार्यकारी समिति (भूभौतिकीय खतरे) की अनुषंसाओं के अनुसार, एनडीएमए ने देष के लिए भूकंप खतरा मानचित्रों को उन्नत करने हेतु भवन-निर्माण सामग्री प्रौद्योगिकी संवर्धन परिशद् (बीएमटीपीसी) के माध्यम से एक परियोजना का काम हाथ में लिया है।
    • आपदा से बचने के लिए केरल की उच्च भूमि क्षेत्र (हाईलैण्ड्स) तथा पादगिरि (फुटहिल्स) में साॅइल पाइपिंग पर अनुसंधान संबंधी परियोजना : साॅइल पाइपिंग केरल राज्य में हाल ही में देखी गई अद्भुत घटना (फिनोमिना) है। यह आन्तरिक परत एक (सब-सर्फेस) के कटाव की साॅइल इरोषन प्रक्रिया है जो कि एक खतरनाक आपदा है, क्योंकि साॅइल इरोषन मिट्टी के नीचे होता है। यह फिनोमिना नया है तथा इसके लिए अध्ययन हेतु उचित लिखित/दस्तावेज (इंस्ट्रूमेंटेषन) तथा इसके प्रषमन हेतु उपायों को सुझाने की जरूरत है। पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र (सीईएसएस)के माध्यम से केरल सरकार एनडीएमए की विŸाीय सहायता से इस फिनोमिना के अध्ययन तथा इस आपदा के बचने के उपाय सुझाने हेतु साॅइल पाइपिंग परियोजना का काम कर रही है।
    • केरल में मीनाचिल और मणिमाला में आकस्मिक बाढ़ हेतु पूर्व-चेतावनी प्रणाली : आपदा प्रबंधन विभाग, केरल सरकार के लिए केरल में मीनाचिल तथा मणिमाला नदी घाटियों में आकस्मिक बाढ़ की माॅनीटरिंग के लिए नदी माॅनीटरिंग, माॅडलिंग तथा पूर्व-चेतावनी प्रणाली के विकास हेतु एनडीएमए भू-जनांकिक अनुप्रयोग मिषन (एमजीए), विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग के प्रस्ताव को विŸापोशित कर रहा है।
    • भारत में भूस्खलन प्रषमन तथा प्रबंधन हेतु तकनीकी परामर्षदाता समिति (टीएसी) का एनडीएमए की को एनडीएमए की पहल पर तथा भूस्खलन तथा हिमस्खलन प्रबंधन पर एनडीएमए के दिषानिर्देष (2009) की सिफारिषों के अनुसार खान मंत्रालय द्वारा गठित किया गया।
    • बाढ़ से सुरक्षा (फ्लड प्रोटेक्षन) हेतु, एनडीएमए जल संसाधन मंत्रालय/केंद्रीय जल आयोग तथा भारत के सर्वेक्षण विभाग के साथ नदी गहराई मापन सर्वेक्षण तथा भारत के सर्वेक्षण विभाग द्वारा डिजिटल एलिवेषन माॅड्यूल (डीईएम) को तैयार करने (1.10 के वाले स्केल पर 0.5/1.0 सीएल के साथ डीईएम) के लिए परियोजना के संचालन तथा अनुमोदन हेतु समन्वय कर रहा है, जिसका विŸापोशण जल संसाधन मंत्रालय की निधियों द्वारा किया जाएगा।